लेखनी कविता -कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है - ग़ालिब

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कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है / ग़ालिब कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है ग़ुंचा ता शगुफ़्तन-हा बर्ग-ए-आफ़ियत मालूम बा-वजूद-ए-दिल-जमई ख़्वाब-ए-गुल परेशाँ है हम से रंज-ए-बेताबी किस तरह उठाया जाए ...

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